आपको देखकर देखता रह गया... ' यह गजल किसी शख्स को देखने और घूरने का अंतर बता देती है। यह मुद्दा इसलिए उठा है, क्योंकि हाल में ही ऐक्ट्रेस ने सोशल मीडिया पर अपना एक कड़वा अनुभव शेयर किया है। ईशा ने इस घटना का विडियो भी शेयर किया। ईशा ने जिस शख्स पर उन्हें रातभर घूरने का इल्जाम लगाया वह एक होटल मालिक है। ईशा ने कहा, वह उनके सामने बैठा उन्हें ही देखता रहा। वह न फैन होने के नाते उन्हें देख रहा था और न ही ऐक्ट्रेस होने के नाते। बल्कि वह इसलिए ईशा को घूर रहा था कि वह एक महिला हैं। ईशा ने सवाल उठाया है कि क्या पुरुषों को घूरने को छूट होती है? किसी महिला को घूरते जाना और असहज महसूस कराना ठीक कैसे हो सकता है। हम कहां तक सुरक्षित हैं? महिला होना श्राप है!' ईशा ने आगे लिखा, 'अगर मेरे जैसी महिला देश में असुरक्षित महसूस कर सकती है, तो बाकी लड़कियां क्या सोचती होंगी। यहां तक कि दो सिक्यॉरिटी गार्ड मेरे साथ थे, लेकिन उसने आंखों से ही रेप कर दिया।' इस घटना ने यह भी साबित कर दिया कि लड़कियों की सुरक्षा अब भी चिंता की बात है। ईशा के ट्वीट के बाद सोशल मीडिया पर कुछ यूजर्स ने इसे पब्लिसिटी स्टंट कहा है, क्योंकि पिछले शुक्रवार को ही ईशा की फिल्म वन डे : जस्टिस डिलिवर्ड रिलीज हुई है। '3 साल तक की सजा हो सकती है' सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट विराग गुप्ता ने बताया, 'निर्भया कांड के बाद महिला सुरक्षा को और बढ़ाने के लिए आपराधिक कानूनों को बहुत सख्त बना दिया गया । महिला को घूरना या पीछा करना भी अब इंडियन पीनल कोड के तहत अपराध के दायरे में आता है, जिसके लिए अधिकतम 3 साल तक की सज़ा का प्रावधान है। इसके पीछे यह उद्देश्य था कि अपराध होने के पहले ही अपराधी पर लगाम लगा दी जाए। लेकिन कई बार सुर्खियों के लिए या व्यक्तिगत खुन्नस निकालने के लिए इन कानूनों का दुरुपयोग भी होता है। फिल्म रिलीज़ होने के पहले ऐसे आरोपों से सनसनी पैदा करने का बढ़ता रिवाज़ कानून के शासन के लिहाज़ से भी ठीक नही। कानून के अनुसार गलत शिकायत करने पर आरोप लगाने वाली महिला पर भी पुलिस द्वारा कार्रवाई की जा सकती है या फिर आरोपी व्यक्ति अवमानना का मामला भी दर्ज करा सकता है।' जानकारों की अगर मानें, तो महज आकर्षण के चलते किसी महिला को देखना और देखते जाना एक सीमा तक ही ठीक है। ज्यादा देर तक देखना या गलत इंटेशन से देखना घूरना माना जाता है और केरल में लागू कानून के मुताबिक 14 सेकंड तक लड़कियों को घूरना अपराध की श्रेणी में आता है। केरल में साल 2016 में यह कानून लागू हो चुका है। 'पब्लिसिटी स्टंट नहीं लगता' ईशा के मामले में फिल्म इंडस्ट्री के जानकार गिरीश जौहर कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि कोई अपनी नैतिकता को ताक पर रखकर फिल्म के लिए ऐसी बात करेगा। ईशा जानी-मानी ऐक्ट्रेस हैं। ऐसा नहीं लगता कि इस घटना और फिल्म में कोई लिंक होगा। कोई भी इस लेवल तक तो नहीं आना चाहेगा। फिल्म प्रमोशन के दौरान स्टार्स को काफी ट्रैवल करना होता है, होटलों में रहना पड़ता है तो ऐसा हो जाता होगा। वे जानबूझ कर खबर में आने के लिए ऐसा नहीं करते। हो सकता है कि ये तब होता होगा जब जनता स्टार्स के ज्यादा करीब होती है। तब उनसे छेड़छाड़ की घटनाएं भी सामने आती हैं, उसी समय फिल्म का रिलीज होना महज इत्तेफाक हो सकता है। आज ऑडियंस को पता है कि कौन सी फिल्म देखनी है। ऐसे पब्लिसिटी स्टंट देखकर कितने लोग फिल्म देखने जाएंगे? ईशा की फिल्म की परफॉर्मेंस देखकर लगता नहीं कि दर्शकों की तादाद बढ़ी होगी। यह इत्तेफाक होगा, ऐसा फायदे के लिए नहीं किया जाएगा। 'वह समझता है, मैंने कुछ नहीं किया' पब्लिक प्लेस पर लड़कियों को घूरने वाले शख्स की साइकॉलजी के बारे में सीनियर सायकायट्रिस्ट विपुल रस्तोगी कहते हैं, 'घूरने वाले शख्स को लगता है कि उसने कोई क्राइम नहीं किया। लेकिन इसका विक्टिम पर गहरा असर पड़ता है और उसका कॉन्फिडेंस कम हो सकता है। आमतौर पर लड़कियां उसे इग्नोर कर देती हैं, क्योंकि घूरने वाले ने न तो उन्हें छुआ और न ही कुछ बोला। लेकिन यह 'सफर इन साइलंस' होता है। यानी वे घुटती रहती हैं और उन्हें एंग्जाइटी भी हो सकती है। ईशा सिलेब्रिटी हैं, तो उन्होंने बोल दिया है लेकिन बहुत-सी लड़कियां किसी को बता भी नहीं पातीं।' डॉ. रस्तोगी बताते हैं कि ये एंटी सोशल पर्सनैलिटी वाले लोग होते हैं, जिनको दूसरों को परेशान करके सुख मिलता है। अगर वे देख लेंगे कि कोई परेशान है, तो भी उसे परेशान करना नहीं छोड़ेंगे। हमारी सोसायटी भी ऐसी है कि महिला और पुरुष अलग अलग रहते हैं, जब तक ओपननेस नहीं होगी तो ये होगा। ऐसे में एंटी सोशल मानसिकता वाले लोग फायदा उठाते हैं।
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