एक दौर था, जब फिल्म का हीरो वह होता था, जो विलेन और उसके दर्जनभर चमचों को अकेले पटक दे, जो मुश्किल में फंसी हीरोइन को बचाने ऐन मौके पर पहुंच जाए और पूरे शहर का रक्षक बने। लेकिन अब बॉलिवुड में हीरो के मायने बदल चुके हैं। अब फिल्म 'लंचबॉक्स' का अधेड़ विधुर साजन फर्नांडिस भी हीरो है, तो 'की ऐंड का' में किचन संभालने वाला कबीर भी। ऐक्टर के मुताबिक, अब रिएलिस्टिक फिल्मों का दौर है और इस बदलाव की वजह हमारी ऑडियंस हैं। उनका कहना है कि पहले फिल्में सेलिब्रेशन हुआ करती थीं, जबकि अब लोगों को सिर्फ मासी नहीं, क्लासी कॉन्टेंट भी चाहिए। अब पहले जैसी नहीं रही पब्लिकअर्जुन का मानना है कि आज ऑडियंस का माइंडसेट बदल गया है। बकौल अर्जुन, 'हमारी ऑडियंस अब बदल गई है। अब पब्लिक पढ़-लिख गई है, तो उनका माइंडसेट बदल गया है। पहले फिल्में एस्केपिज्म (सच्चाई से दूर भागने) के लिए होती थीं, लेकिन अब लोग चाहते हैं कि आप उन्हें सोचने के लिए भी कुछ दो। आज की मल्टिप्लेक्स ऑडियंस पहले से ज्यादा समझदार और सेंसिबल है। पहले फिल्में सेलिब्रेशन हुआ करती थीं। लोग पूरी फैमिली के साथ इंजॉय करने जाते थे। अब ऑडियंस के पास इतना टाइम नहीं है। डिजिटल जमाना है, दो घंटे की फिल्म भी लंबी लगती है। पहले सिनेमा मास मीडियम था, जबकि टीवी सेलेक्टिव लोगों का माध्यम था। फिर जब केबल आया, अलग-अलग चैनल आए, उस पर घर-घर की कहानी शुरू हुआ, तो वह मास मीडियम बन गया। अब तो डिजिटल भी आ गया है, तो घर पर बैठकर आप मास कॉन्टेंट भी देख सकते हैं, क्लास कॉन्टेंट भी देख सकते हैं। इसीलिए, अब लोगों को सिनेमाघरों तक बुलाने के लिए मास और क्लास का अच्छा मिश्रण बनाकर देना पड़ेगा। हालांकि, हमें थोड़ा टाइम लगा, लेकिन मुझे लगता है कि फिल्म इंडस्ट्री ने इस बदलाव को स्वीकार कर लिया है। पिछले कुछ सालों में हमारी सफलता की दर भी बढ़ी है।' सोशल मीडिया के चलते कम हुआ स्टारडमक्या हीरोइज्म के बदले मायने के चलते अब स्टारडम पाना और बरकरार रखना ज्यादा मुश्किल है, जबकि उस दौर में यह आसान था? यह पूछने पर अर्जुन का कहना है, 'आसान तो नहीं कहूंगा, पर निश्चित तौर पर तब स्टार्स का एक ऑरा था, एक मिस्ट्री थी। आज एक फिल्म के लिए मैं 500 से ज्यादा इंटरव्यू देता हूं। तमाम फोटोज खिंचाता हूं और हर इंसान से मिलता हूं, तो टेक्निकली मैं रोज परदे से उतरकर धरती पर चल रहा हूं, किसी भी दूसरे लड़के की तरह और यही आज ऑडियंस चाहती भी है। पहले सितारे कभी-कभी जमीन पर आते थे, तो लगता था कि अच्छा ये ऐसे दिखते हैं, ऐसे डांस करते हैं। आज मैं घर से निकलता हूं, तो क्या कपड़े पहनकर वर्कआउट करने जा रहा हूं, वह भी लोगों को पता होता है, तो एक ऑरा कम होता है। इससे एक अपनापन जरूर आता है, पर वह चमक, वह स्टारडम निश्चित तौर पर कम लगती है।' जितना अपनापन, उतना स्टारडमस्टारडम के बदले मायने के बाबत अर्जुन कहते हैं, 'मेरा मानना है कि स्टारडम असल में यह है कि आप खुद को कैसे कंडक्ट करते हैं। आप ऑफ कैमरा, ऑन कैमरा कैसे हैं, यह इन सब चीज़ों का मिश्रण है। आज स्टारडम का मतलब पहले से बदल चुका है। आज मामला थोड़ा उल्टा हो चुका है कि आज आप जितने नॉर्मल हैं, उतना आपका स्टारडम है। यह मजेदार है कि आप एक नए पहलू का हिस्सा हैं, पर आप अगर मेरी राय पूछिए, तो मेरी सोच थोड़ी पुराने जमाने वाली है। मुझे लगता है कि आपकी फिल्म के लिए यह ज्यादा फायदेमंद है कि आप कभी-कभी लोगों के बीच आते हैं, बजाय इसके कि आप रोज उपलब्ध हैं। ऐसे में आपकी फिल्म बहुत कमाल की होनी चाहिए, क्योंकि वहां लोग आपको देखने नहीं आ रहे। फिल्म देखने के लिए आ रहे हैं। आपको देखना होगा, तो वे इंस्टाग्राम खोल लेंगे।' कभी-कभी लगता है कि सोशल मीडिया छोड़ दूंयुवा स्टार रणबीर कपूर सोशल मीडिया से अपनी दूरी की वजह यही बताते हैं कि पब्लिक के बीच ऐक्टर्स को लेकर एक मिस्ट्री होनी चाहिए। इस पर अर्जुन सहमति जताते हुए कहते हैं, 'मैं काफी हद तक रणबीर से सहमत हूं, लेकिन उनमें वह क्षमता है। वह हमारी जनरेशन के पहले यंग स्टार थे। उन्होंने 4-5 फिल्में ऐसी कीं, जिससे अपनी एक ऑडियंस बनाई, तो आज उन्हें एक पॉइंट के बाद खुद को सोशल मीडिया पर जाकर बेचने की जरूरत नहीं है। वह अपनी प्राइवेट लाइफ को प्राइवेट रखना पसंद करते हैं। हालांकि, मैं जानता हूं कि वह हर सोशल साइट पर हैं और जो भी हो रहा है, उनको सब पता है, जो ठीक है। उन्होंने यह चॉइस बनाई और वह उससे खुश हैं। मैं खुद भी शुरू में 3 साल सोशल मीडिया से दूर रहा। फिर लगा कि इससे लोगों से बात करने का मौका मिलता है, तो मैंने उसमें अच्छाई ढूंढी। कभी-कभी लगता है कि इसे छोड़ देना चाहिए, फिर लगता है कि नेगेटिव सोच को क्यों महत्व दें! ये सबके लिए अलग है। कोई दिन अच्छा होता है, कोई दिन बुरा होता है, लेकिन मुझे लगता है कि सोशल मीडिया से स्टारडम नहीं बदलती।'
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